Biography Of Swami Vivekanand स्वामी विवेकानंद का जीवनी
जन्म तिथि: 12 जनवरी, 1863
जन्म स्थान: कलकत्ता , बंगाल प्रेसीडेंसी (पश्चिम बंगाल में कोलकाता)
पिता का नाम: विश्वनाथ दत्त
माता का नाम: भुवनेश्वरी देवी
धर्म : हिंदू धर्म
शिक्षा: कलकत्ता मेट्रोपॉलिटन स्कूल; प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता (वर्तमान मे कोलकाता)
संस्थाएँ: रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन और वेदांत सोसायटी ऑफ न्यूयॉर्क
प्रकाशन: कर्म योग (1896); राज योग (1896); कोलंबो से अल्मोड़ा के लिए व्याख्यान (1897); माई मास्टर (1901)
मृत्यु: 4 जुलाई, 1902
मृत्यु का स्थान: बेलूर मठ, बेलूर, पश्चिम बंगाल
स्मारक: बेलूर मठ, बेलूर, पश्चिम बंगाल
स्वामी विवेकानन्द जी आध्यात्मिक, प्रखर विचारक, महान वक्ता और देशभक्त थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस जी के विचारों को आगे बढ़ाये। वे जरूरतमंदों और गरीबों की सेवा तथा अपने देश के लिए अपना सर्वस्व समर्पित किये और समाज का भलाई करने के लिए अथक प्रयास किये। वे हिंदू आध्यात्म का पुनरुत्थान किये और विश्व मंच पर हिंदू धर्म को श्रद्धा के साथ स्थापित किये। भाईचारा और आत्म-जागृति का संदेश वे दुनिया के लोगो को दिये। उनका जन्मदिन, 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा Early Life And Education
नरेंद्रनाथ दत्त का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। वे आठ भाई बहन थे। नरेंद्र नाथ के पिता विश्वनाथ समाज में अच्छे प्रभाव वाले एक सफल वकील थे। नरेंद्रनाथ की मां भुवनेश्वरी ईश्वर मे श्रद्धा रखने वाली महिला थीं, माता का प्रभाव बेटे पर बहुत पड़ा।
नरेंद्रनाथ दत्त बचपन से ही प्रखर बुद्धि के थे। वे संगीत, वाद्य के साथ-साथ गायन में भी रुचि रखते थे। मेट्रोपॉलिटन संस्थान तथा बाद में कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ाई मे अच्छा प्रदर्शन किये। कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरा करने के साथ वे विभिन्न विषयों मे ज्ञान प्राप्त कर लिये थे। उनका खेल, जिम्नास्टिक, बॉडी बिल्डिंग और कुश्ती में रूचि था वे पढ़ने मे भी रूचि रखते थे। वे भगवद् गीता और उपनिषदों के साथ डेविड ह्यूम, जोन गोटलिब फिच्ते और हर्बर्ट स्पायर द्वारा रचित पश्चिमी दर्शन, इतिहास और आध्यात्मिकता का भी अध्ययन किये थे।
रामकृष्ण परमहंस के साथ आध्यात्मिक संबंध Spiritual Relation with Ramkrishna Paramhans
विवेकानन्द जी की माता धार्मिक स्वभाव की थीं। घर मे धार्मिक वातावरण था। भगवान के अस्तित्व के बारे में दार्शनिक सवाल और जिज्ञासा विवेकानन्द जी के दिमाग मे घूमता रहता था। विवेकानंद ने श्री रामकृष्ण परमहंस के बारे मे पहली बार स्कॉटिश चर्च कॉलेज के प्रिंसिपल विलियम हस्ति से सुने ।
ईश्वर के बारे मे अपनी जिज्ञासा और सवालों के संदर्भ मे नरेंद्रनाथ ने सभी धर्मों के प्रमुख आध्यात्मिक गुरूओं से मिले। उनका गुरूओं से एक ही सवाल होता था कि “क्या आपने भगवान को देखा है?” इसी प्रश्न को वे श्री रामकृष्ण परमहंस से दक्षिणेश्वर काली मंदिर के परिसर में उनके निवास पर रखा। एक पल भी बिना सोचे समझे बिना किसी हिचकिचाहट , श्री रामकृष्ण परमहंस ने उत्तर दिया कि “हाँ, मैने देखा है। मैं ईश्वर को उतना ही स्पष्ट रूप से देखता हूँ जितना मैं तुमको देखता हूँ।” रामकृष्ण की सादगी से और उनके उत्तर से नरेंद्रनाथ प्रभावित और चकित हुए। रामकृष्ण ने धीरे-धीरे नरेंद्रनाथ को अपने धैर्य और प्रेम से जीत लिया। नरेंद्रनाथ जितने बार दक्षिणेश्वर गये, उनके सवालों का जवाब श्री रामकृष्ण परमहंस दिए ।
आध्यात्मिक जागृति Spiritual Awakening
नरेंद्रनाथ 1884 में अपने पिता की मृत्यु के कारण काफी आर्थिक तंगी का सामना किये, क्योंकि उन्हें उनकी माँ और छोटे भाई-बहनों का देख भाल करना था। वे श्रीरामकृष्ण से कहे कि देवी से अपने परिवार के आर्थिक कल्याण के लिए प्रार्थना करें। रामकृष्ण के सुझाव पर वे खुद मंदिर में प्रार्थना करने के लिए गए। लेकिन जब उन्हे देवी का सामना हुआ तो वे पैसे और धन नहीं मांग सके, इसके जगह वे विवेक और बैराग्य मांगे। उस दिन नरेंद्रनाथ को पूर्ण रूप से आध्यात्मिकता मे जागा हुआ माना गया और वे खुद अपने जीवन को एक तपस्वी के तरीके से व्यतीत करने लगे।
विवेकानंद जी का भिक्षु का जीवन Life Of A Monk Of Vivekanand Ji
1885 के मध्य मे रामकृष्ण परमहंस गले के कैंसर से पीड़ित हो गये। सितंबर 1885 में, श्री रामकृष्ण को कलकत्ता में श्यामपुकुर ले जाया गया, कुछ महीनों के बाद नरेंद्रनाथ रामकृष्ण को कोसीपुर में किराए का मकान लेकर उनका सेवा किए। वे उन युवाओं का एक संगठन बनाये जो श्री रामकृष्ण के अनुयायी थे और साथ में वे अपने गुरु का देख – रेख समर्पित भाव से किये। 16 अगस्त 1886 को श्री रामकृष्ण परमहंस अपना नश्वर शरीर त्याग दिये।
श्री रामकृष्ण परमहंस के निधन के बाद, नरेंद्रनाथ और उनके लगभग पंद्रह शिष्य उत्तर कलकत्ता के रामकृष्ण मठ मे रहने लगे । 1887 में वे औपचारिक रूप से दुनिया से सभी संबंधों को त्याग दिये और भिक्षुणता का प्रतिज्ञा कर लिए। उसके बाद नरेन्द्रनाथ, विवेकानंद जिसका अर्थ है बुद्धि का आनंद के रूप में उभरे।
स्वेच्छा से दिया हुआ भिक्षा ग्रहण करते थे। तथा योग और ध्यान करते थे। विवेकानंद 1886 में मठ छोड़ दिये और पैदल भारत का दौरा करने लगे।
विश्व धर्म संसद में व्याख्यान Lecture In World Religions Parliament
अपने भ्रमण के दौरान, 1893 में शिकागो, अमेरिका में आयोजित विश्व धर्म संसद के बारे में उन्हे पता चला। वे भारत, हिंदू धर्म और उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के दर्शन का प्रतिनिधित्व करने के लिए उस बैठक में भाग लेने के लिए उत्सुक थे। दक्षिणी भारत स्थित कन्याकुमारी मे चट्टानों पर ध्यान करते समय उन्हें यह इच्छा हुआ। मद्रास (चेन्नई) में उनके शिष्यों ने पैसे का प्रबंध किया। खेतड़ी के राजा अजित सिंह और स्वामी विवेकानंद 31 मई 1893 को बंबई(मुम्बई) से शिकांगो के लिए रवाना हो गये।
शिकांगो जाते समय रास्ते में उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। 11 सितंबर 1893 को, जब वे मंच पर बोलना शुरू किये तो अपनी प्रारंभिक पंक्ति “अमेरिका के मेरे भाइयों और बहनों” से शुरू किये उनके बोलने से सभी चौंक गये। वे हिंदू धर्म को विश्व के मानचित्र पर डालते हुए वेदांत के सिद्धांतों और उनके आध्यात्मिक महत्व का जोरदार वर्णन किये।
वे अमेरिका में ढाई साल रहे। 1894 में न्यूयॉर्क मे वेदांत सोसाइटी का स्थापना किये। वे पश्चिमी दुनिया को वेदांत और हिंदू अध्यात्मवाद के सिद्धांतों से अवगत कराने के लिए यूनाइटेड किंगडम का यात्रा किये ।
शिक्षा और रामकृष्ण मिशन Education And Ramakrishna Mission
अमेरिका से स्वामी विवेकानंद जी 1897 में भारत वापस आए। देश में कई जगह अपना व्याख्यान देने के बाद वे कलकत्ता (कोलकाता) आये। 1 मई, 1897 को कलकत्ता के पास बेलूर मठ में रामकृष्ण मिशन का स्थापना किये। रामकृष्ण मिशन के उद्देश्य कर्म योग के आदर्शों पर आधारित था। इस मिशन का प्राथमिक उद्देश्य देश के गरीब और संकट से ग्रस्त लोगों का सेवा करना था। रामकृष्ण मिशन देश में राहत और पुनर्वास का काम करते हुए सम्मेलन और सेमिनार के माध्यम से वेदांत के व्यावहारिक सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार, स्कूल, कालेजों तथा अस्पतालों का स्थापना और अन्य सामाजिक सेवा के कई काम किये।
वे नि:स्वार्थ कार्य, पूजा और मानसिक अनुशासन के द्वारा आत्मा की दिव्यता को प्राप्त करने का शिक्षा दिये। विवेकानंद जी के अनुसार मनुष्य का अंतिम लक्ष्य आत्मा का स्वतंत्रता प्राप्त करना है।
स्वामी विवेकानंद राष्ट्रवादी थे। उनके मन में देशवासियों का समग्र कल्याण करना था। वे देशवासियों से कहते थे कि “उठो, जागो और अपने लक्ष्य को पाने तक मत रुकना”।
स्वामी विवेकानंद का स्वर्गवास Death Of Swami Vivekanand
स्वामी विवेकानंद भविष्यवाणी किये थे कि वे चालीस साल के उम्र तक धरती पर नहीं रहेंगे। 4 जुलाई, 1902 को, वे बेलूर मठ में कार्य का जानकारी लिए। विद्यार्थियों को संस्कृत और व्याकरण पढ़ाये। शाम को अपने कमरे में जाकर ध्यान लगाये। उसी दौरान लगभग 9 बजे उनकी मृत्यु हो गई। ऐसा कहा जाता है कि उन्हे महासमाधि मिली। स्वामी विवेकानंद का गंगा नदी के तट पर अंतिम संस्कार कर दिया गया।
विरासत Inheritance
स्वामी विवेकानंद जी का मान्यता था कि मानवता और भाईचारा की भावना से ही इतने विविधता वाले देश को एक साथ बांधा जा सकता है। वे पश्चिमी सभ्यता की कमियां और उन पर काबू पाने के लिए भारत के योगदान पर जोर दिये। नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक बार कहे थे कि “स्वामीजी ने पूर्व और पश्चिम, धर्म और विज्ञान, अतीत और वर्तमान में सामंजस्य स्थापित किये। वे हिंदू धर्मग्रंथों और पश्चिम के लोगों के जीवन यापन के तरीके का व्याख्या किये। वे एहसास दिलाये कि गरीबी और पिछड़ेपन के बावजूद, विश्व संस्कृति को बनाये रखने में भारत का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
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