शरद पूर्णिमा का महत्व Importance Of Sharad Purnima
शरद पूर्णिमा , हिन्दी माह अश्विन के शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन को चंद्रमा के चांदनी को उत्सव के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा धरती पर अपने चांदनी के जरिये अमृत या जीवन के लिए उपयोगी किरणो का विस्तार करते है। इस दिन चंद्रमा की चमक विशेष रूप से खुशी लाता है। गुरू के प्रति श्रद्धा रखने वाले भक्त इस दिन चंद्रमा को एक टक देखता है जिसे त्राटक कहा जाता है। चंद्रमा पर इस दिन त्राटक करने से भक्त को चंद्रमा मे गुरू का दर्शन होता है।
ऐसा माना जाता है कि इस रात का धार्मिक महत्व है। क्योंकि इस रात को ही देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि जो भी इस रात देवी लक्ष्मी की पूजा करता है और उपवास करता है। भले ही उस आदमी के कुंडली में लक्ष्मी का योग ना हो फिर भी मां लक्ष्मी की कृपा होती है। इस उपवास के समय ठंढा दूध पीना लाभकारी माना गया है। शाम के समय खीर बनाकर उसमे चांदी का सिक्का या चांदी का कोई चीज खीर मे डालकर सूती कपड़े से ढक कर चंद्रमा के रोशनी मे रख देना चाहिए। जब उपवास पूरा हो तो सबसे पहले उस खीर को खाना चाहिए।
शरद रितु के समय दिन मे गर्मी होता है और रात को ठंडी होती है। ऐसे मौसम मे हमारे शरीर में पित्त या अम्लता हो जाती है। इन दिनो दूध और चावल का खीर खाने से शरीर के पित्त को ठीक करने मे मदद मिलता है।
पूरे देश मे यह त्योहार मनाया जाता है। गुजरात में इस त्योहार को शरद पूनम के रूप में जाना जाता है। उड़ीसा में, इस दिन को कुमार पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। शंकर भगवान के पुत्र कुमार या कार्तिकेय का जन्म शरद पुर्णिमा के दिन ही हुआ था। पश्चिम बंगाल में भी दुर्गा पूजा के बाद लगभग हर घर में इस दिन महत्वपूर्ण त्यौहार के रूप मे मनाया जाता है।
अविवाहित लड़कियां सुन्दर पति की इच्छा से कार्तिकेय या कुमार की पूजा करती हैं। कार्तिकेय देवताओं में सबसे सुंदर थे। इस दिन विशेष कर सूर्य और चंद्रमा का पूजा किया जाता है।
शरद पूर्णिमा के दिन लड़कियां जल्दी उठती हैं। स्नान करके नए वस्त्र पहनती हैं और सूर्य भगवान को फल प्रसाद से अर्घ देती हैं। वे पूरे दिन शाम तक उपवास रहती हैं। जब चंद्रमा उदय होते है, तो वे फिर चंद्रमा को फल प्रसाद से अर्घ देतीं है। अनुष्ठान खत्म होने के बाद वे फल प्रसाद का पारन (भोजन) करती हैं। लड़कियों के लिए, यह दिन विशेष गीतों , आनंद , नृत्य और गायन का त्यौहार होता है।
शरद पूर्णिमा पर श्री कृष्ण की रासलीला Raaslila Of Shri Krishna on Sharad Purnima
ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही, भगवान कृष्ण ने राधा और अन्य गोपियों के साथ अपनी रासलीला की शुरुआत की। रासलीला कृष्ण द्वारा किया गया एक बहुत ही दिलचस्प चमत्कार था। शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण ने अपना दिव्य बांसुरी बजाया और राधा सहित सभी गोपी उसके चारों ओर इकट्ठे हो गये। श्री कृष्ण रात भर प्रत्येक गोपी के साथ नृत्य किये। ऐसा कहा जाता है कि देवता ही गोपियां बन के आये थे। श्री कृष्ण की दिव्य शक्तियों के माध्यम से रात को इतनी देर तक और ऐसी रास लीला हुई कि गोपियां ऐसा महसूस की कि जैसे वे हजारों वर्षों से उनके साथ नाच रहे हों।