माता वैष्णो देवी की कहानी Story Of Mata Vaishno Devi
माता वैष्णो देवी की कहानी त्रेता युग की घटनओं से जुड़ा है। उस समय धार्मिक लोगों को असुरो (राक्षसो) रावण, कुंभकरण, खर – दुशण, ताड़का और अन्य राक्षसो द्वारा पीड़ित किया जाता था। देवता गड़ अपनी सुरक्षा के लिए एक दिब्य लड़की के रूप में अपना व्यक्तित्व बनाने का फैसला किये। दिव्य लड़की ने उन देवतओं से अपने जन्म का कारण पूछा। देवतओं ने उन्हे बताया कि वे धर्म की रक्षा और धर्म की भावना को फिर से बढ़ाने के लिए उन्हे बनाया है। त्रिकुटा नाम की लड़की के रूप में रत्नाकर सागर के घर मे दक्षिण भारत में जन्म लिया। उसी लड़की का नाम वैष्णो था। क्योंकि वह भगवान विष्णु के वंश से जन्म ली थी। इस देवी लड़की द्वारा प्रचारित धर्म को वैष्णो-धर्म कहा जाता था।
अपने जीवनकाल में त्रिकुटा ने कई संतों और समर्पित अनुयायियों को आकर्षित किया। उनकी दिव्य शक्ति और चमत्कार की प्रसिद्धि दूर दूर तक फैल गई। लोग बड़ी संख्या मे त्रिकुटा के निवास स्थान पर जाना शुरू किया।
कुछ समय बाद देवी त्रिकुटा समुद्र के किनारे तपस्या करने के लिए अपने पिता से अनुमति मांगी। त्रिकुटा भगवान विष्णू से राम को पाने के लिए प्रार्थना की। कुछ समय बाद श्री राम चन्द्र जी सीता की खोज में अपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुंचे, उनकी आंखें इस दिव्य लड़की पर पड़ी । राम ने त्रिकुटा से उनका नाम और तपस्या का कारण पूछा। उन्होने जवाब दिया कि वे राम जी को अपने पति के रूप में अपने दिल और दिमाग से स्वीकार कर लिया है।
यह सुनकर राम जी ने उन्हे बताया कि वे शादी शुदा है और अपने पत्नी के प्रति वफादार है। हालांकि, राम जी ने सोचा कि त्रिकुटा की तपस्या को बर्बाद और निष्फल नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए उन्होने उनसे कहा कि मैं निश्चित रूप से आपको देखने वेश बदल कर देखने के लिए आऊंगा। यदि आप उस समय मुझे पहचान लिए तो मैं आपको स्वीकार कर लूंगा।
ऐसा माना जाता है कि श्री राम जी लंका से लौटते समय, एक साधू के रूप में लड़की को देखने के लिए गए लेकिन वे उन्हे भगवान के रूप में नहीं पहचान पायीं।
भगवान राम अपना पहचान प्रकट किये और त्रिकुटा को आश्वासन दिये कि कलियुग में कल्की के रूप मे प्रगट होंगे और उनसे शादी करेंगे।
भगवान राम उन्हे त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पर्वत की त्रिकुटा रेंज में ध्यान करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि त्रिकुटा हमेशा के लिए अमर बन जाएगी और ‘वैष्णो देवी’ के रूप में प्रसिद्ध होगी।
माता वैष्णो देवी मंदिर Mata Vaishno Devi Temple
यह मंदिर जम्मू के उधमपुर जिले के कटरा में त्रिकूट पर्वत पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए जम्मू तक रेल सेवा उपलब्ध है। जम्मू से बसों या टैक्सियों से आसानी से वैष्णो देवी मंदिर तक पहुंचा जा सकता हैं।माता वैष्णो देवी मंदिर भारत का सबसे पवित्र मंदिर है और यह मंदिर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। कटरा से मंदिर 13 किमी की यात्रा करके पहुंचा जा सकता है। कटरा एक छोटा सा शहर है जो जम्मू के उधमपुर जिले में स्थित है। जम्मू से, कटरा 50 किमी की दूरी पर है।
वैष्णो देवी मंदिर भारत मे दूसरे सबसे ज्यादा देखे जाने वाला धार्मिक स्थल हैं, पहले स्थान पर तिरुपति में बालाजी मंदिर हैं। वैष्णो देवी मंदिर श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड द्वारा प्रबंधित और रखरखाव किया जाता है। वैष्णो देवी को दुर्गा (शक्ति) के अवतार के रूप में भी जाना जाता है। हर साल लाखों तीर्थयात्री माता वैष्णो देवी के पवित्र मंदिर को जाते हैं। इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक किंवदंती है।
माता वैष्णो देवी की किंवदंती Legend of Mata Vaishno Devi
पौराणिक कथाओं के अनुसार, वैष्णो देवी लगभग 700 साल पहले जन्म लिये थे। लड़की भगवान राम का एक सच्चा भक्त थी और पूरे जीवन ब्रह्मांड मे रहने के लिए संकल्प ली थी। उस समय, भैरव नाथ ने देवी की शक्तियों के बारे में साधना किया था। एक तांत्रिक होने के नाते, उसने शक्तियों के साथ लड़की को पकड़ने के लिए कोशिश किया। अपनी तांत्रिक (काला जादू) शक्तियों के साथ, उसने देखा कि लड़की त्रिकुट पर्वत की तरफ जा रही है।
देवी के बारे में अनजान, भैरथ नाथ ने लड़की का पीछा करना शुरू कर दिया। देवी खुद को बचाने के लिए भाग गई, जब देवी ने प्यास महसूस किया तो जमीन में एक तीर मारा और पानी निकल गया। इस जगह निरंतर पानी बहता है। इसे बाण गंगा के नाम से जाना जाता है। उनके पैरों के निशान बाण गंगा के तट पर चिह्नित है। उन्हें चरन पदुका कहा जाता है। इसके बाद, देवी ध्यान के लिए अर्धकुमारी में एक गुफा में गईं।
इस गुफा को खोजने मे भैरव को नौ महीने लग गए। भैरव जब गुफा में आया तो देवी का ध्यान टूट गया। उस समय से, इस गुफा को गर्भ जोन के नाम से जाना जाने लगा। देवी पहाड़ी पर आगे बढ़ी और जब भैरव ने वैष्णो देवी को मारने की कोशिश की तो वे महाकाली का रूप धारण कर लिए और भैरोंनाथ का सिर काट दिये। भैरव का सिर जहां गिरा उस जगह पर भैरव मंदिर है। उस क्षेत्र को भैरव घाटी कहा जाता है। यह स्थान पवित्र गुफा से 2.5 किलोमीटर की दूरी पर है। आखिरी क्षण में, भैरव नाथ ने देवी से प्रार्थना की। वैष्णो देवी को पता था कि हमले के पीछे भैरव का उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना था। देवी ने जीवन और मृत्यु के चक्र से भैरन को मुक्त कर दिया।
इसके अलावा, माता ने कहा कि जो भी भक्त उनकी गुफा में दर्शन के लिए आयेंगे , उन्हे तीर्थयात्रा को पूरा करने के लिए भैरों मंदिर जाना होगा। इसके तुरंत बाद, वैष्णो माता ने तीन ‘पिंडी’ के रूप में एक चट्टान की छवि ग्रहण की और खुद को हमेशा ध्यान में अवशोषित कर लिया। कहानियों के अनुसार, पवित्र गुफा के प्रवेश द्वार पर चट्टान भैरन नाथ की भयावह धड़ है, जिसे वैष्णो देवी ने अपने आखिरी क्षणों में क्षमा किया था।
माता वैष्णो देवी की पवित्र गुफा Holy Cave of Mata Vaishno Devi
माता के गुफा में महा काली, महा लक्ष्मी और महा सरस्वती का पींडी रूप मे दर्शन होता है।ऐसा माना जाता है कि माता अपने समर्पित भक्तों की इच्छाओं को पूरा करती है और कोई भी मंदिर से खाली हाथ नहीं जाता हैं इसी विश्वास के साथ, लोग आशीर्वाद लेने के लिए माता वैष्णो देवी के मंदिर में आते हैं।
शुरु मे वैष्णो देवी की यात्रा खड़ी सड़कों के साथ मुश्किल था, लेकिन वर्तमान समय में, रास्ता पहले से अधिक आसान बना दिया गया है। तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए घोड़े, पालकी और हेलीकाप्टर उपलब्ध हैं जो आपको माता के मंदिर तक ले जाते हैं। ज्यादातर लोग कटरा से मंदिर (गुफा) तक जाने का रास्ता पसंद करते हैं। तीर्थयात्रियों के अनुसार, माता वैष्णो की दर्शन के बाद सभी थकावट दूर हो जाता है।
तीर्थयात्री समूह में ‘जय माता दी’ का नारा लगाते हुए चलते हैं। कटरा में, विभिन्न दुकानें फूल, नारियल, सूखे फल और अन्य चीजें बेची जाती हैं जिसे लोग माता को चढ़ाने के लिए खरीदते हैं। तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए पानी और अन्य सुविधा का पर्याप्त व्यवस्था किया गया है।