क्रिसमस की कहानी The Story And History Of Christmas
क्रिसमस की कहानी Story Of Christmas
क्रिसमस का त्यौहार विश्व के सर्वाधिक लोग पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। आज कल यह त्यौहार विदेशों में ही नहीं बल्कि हमारे देश भारत में भी जोश के साथ मनाया जा रहा है। हमारे देश भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति के वजह से क्रिसमस का त्यौहार भी घुल-मिल गया है। यह त्यौहार सदियों से लोगों में खुशियां बांटता रहा है और प्रेम तथा सौहार्द का मिसाल कायम करता रहा है। क्रिसमस हम लोगो के सामाजिक परिवेश का प्रतिबिंब भी है, जो विभिन्न जाति धर्र्मो के बीच भाईचारे को मजबूती देता है। बाइबिल के अनुसार, परमात्मा ने अपने भक्त याशायाह के माध्यम से ईसा पूर्व 800 मे ही यह भविष्यवाणी कर दी थी कि इस दुनिया में एक राजकुमार का जन्म होगा और उसका नाम इमेनुएल रखा जाएगा। इमेनुएल का अर्थ है ‘ईश्वर हमारे साथ‘ है। याशायाह की भविष्यवाणी सत्य साबित हुआ और यीशु मसीह का जन्म इसी प्रकार हुआ।
यीशु के जन्म ( Birth Of Jesus )की खबर सबसे पहले निर्धन वर्ग के लोगों को मिला था। वे बहुत मेहनत करने वाले गड़रिये थे। सर्दी की रात मे जब उन्हें ये खबर मिला तो वे खुले आसमान के निचे खतरों से बेखबर सोते हुए अपनी भेड़ों की रखवाली कर रहे थे। एक तारा चमका उसके बाद स्वर्ग दूतों के दल गड़रियों को खबर दिये कि तुम्हारे बीच मे एक ऐसा बालक जन्म लिया है, जो तुम लोगो का राजा होगा। यह खबर सुनकर पूरे दुनिया के गरीब लोग खुश हे गये और राजा हेरोदेस जो गरीबों पर जुल्म करता था, वो नाराज हो गया। वो अपने राज्य में 2 वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों को कत्ल कर देने का आदेश जारी कर दिया, ताकि उसकी राज सत्ता को भविष्य में किसी से खतरा हो। बुराई करने वाले अच्छाई को देखकर ऐसे ही दुखी और नाराज होते हैं। शैतानियत का यही प्रतीक है। इसी शैतानियत को खत्म करने के लिए ईसा मसीह आए हुए थे।
ईसा मसीह मनुष्य के रूप में जन्म लेने के लिए किसी धनी आदमी का घर नहीं चुना। वे एक गरीब आदमी के घर के गोशाला में घास पर जन्म लिए। वास्तव मे वे गरीब, शोषित , पीड़ित व भोले-भाले लोगों का उद्धार करने के लिए आये थे। इसी वजह से वे जन्म से ही ऐसे लोगों के बीच अपना स्थान चुने थे। यह एक बहुत बड़ा संदेश था।
ईसा मसीह 30 वर्ष की उम्र में सामाजिक अव्यवस्था के खिलाफ अपना आवाज बुलंद किये। वे जनता को लाचारों और दीन-दुखियों की सहायता करने, लालच न करने, प्रेमभाव से रहने, ईश्वर और अपने देश के प्रति कर्तव्यनिष्ठ रहना, जरूरतमंदो के जरूरत को पूरा करना, आवश्यकता से अधिक धन संग्रह न करना इस तरह का उपदेश दिये। ईसा मसीह के दिए हुए संदेशों की प्रासंगिकता बहुतहै, क्योंकि आज सामाजिक बुराइयां अपना रूप ले लिया है, आज कल समाज मे गरीबों, पीड़ितों, लाचारों, और दलितों को शिकार होना पड़ता है।
ईसा मसीह समाज को समानता का पाठ पढ़ाए थे। वे बार-बार यही कहे थे कि वे ईश्वर के पुत्र हैं। भले ही इस दुनिया में अन्याय ,क्रूरता जैसी अनेक बुराइयां हैं, लेकिन ईश्वर के घर में सभी बराबर हैं। वे ऐसा ही समाज बनाने पर जोर दिये, जिसमें अन्याय व क्रूरता की जगह न हो और सभी समानता व प्रेम के साथ आपस मे मिल जुल कर रहें। एक ऐसी कहानी बाइबिल में आती है, कि एक सामरी संप्रदाय की स्त्री थी। ईसा मसीह ने जब उससे पीने के लिए पानी मांगे तो उस स्त्री ने कहा कि आप यहूदी है और मुझ सामरी स्त्री से पानी क्यों मांग रहे है? असल मे, यहूदी लोग सामरियों से किसी भी प्रकार का व्यवहार नहीं रखते थे। लेकिन ईसा मसीह उसके हाथ का पानी पिये। ईसा मसीह दलित,और असहाय लोगों को नयी आशा और जीवन का संदेश दिये। वे अपना सम्पूर्ण जीवन मानव के कल्याण में लगाये। यही वजह था कि उनको क्रॉस पर मृत्युदंड दिया गया। लेकिन समाज कल्याण और दूसरों के हितो का काम करने वाले मृत्युदंड से कब डरते हैं।
क्रिसमस का पर्व कयी चीजों के लिए खास होता है जैसे क्रिसमस का ट्री, स्टार और गिफ्ट्स आदि। बहुत से लोग ये मानते हैं कि क्रिसमस के दिन सांता क्लॉज बच्चों को उपहार देते है। 4वीं शताब्दी से सांता क्लॉज को याद करने का चलन शुरू हुआ था। संत निकोलस, तुर्किस्तान के मीरा नामक शहर के बिशप थे। सांता क्लाज़ सफेद व लाल ड्रेस पहने हुए, एक व्रद्ध मोटा कद का पौराणिक चरित्र है, जो रेन्डियर पर स्वार होकर समारेह में, खास कर बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
क्रिसमस खुशियों का त्यौहार है। ईसा मसीह का उपदेश आज भी इसीलिए प्रासंगिक हैं, क्योंकि आज भी जातिवाद ,अमीरी-गरीबी, और सामाज मे विसंगतियां मौजूद हैं। हम अपने आसपास जब नजर डालेंगे और गरीब लोगों के दुख दर्द को समझेंगे तथा ईसा मसीह के तरह अपनी कोशिशों से उनके चेहरे पर थोड़ा सा मुस्कान लाएंगे, तभी हमें क्रिसमस का वास्तविक खुशियां मिलेंगी।