What is Article 370? अनुच्छेद 370 क्या है?
अनुच्छेद 370 जम्मू-काश्मीर राज्य को स्वायत्त और विशेष स्थिति प्रदान करके शेष भारत से अलग करता है। अनुच्छेद 370 के वजह से भारत के संविधान का सभी प्रावधान जो भारत के सभी राज्यों पर लागू होते हैं, जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय दंड संहिता के जगह पर, जम्मू-कश्मीर रणबीर दंड संहिता को मानता है। सन् 1965 तक जम्मू-कश्मीर में गवर्नर के जगह सदर-ए-रियासत होते थे और मुख्यमंत्री के जगह प्रधान मंत्री होते थे।
विदेशी मामलों , संचार, वित्त और रक्षा मंत्रालय के अलावा सभी कानूनों के लिए, भारतीय संसद राज्य सरकार की सर्वसम्मति पर निर्भर करती है। इसके अलावा, केंद्र युद्ध या बाहरी हिंसा जैसी स्थितियों को छोड़कर राज्य में अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपातकाल घोषित नहीं कर सकता है।
ऐसा नहीं है कि अनुच्छेद 370 का अतीत में इसका विरोध नहीं हुआ था। एक महान विचारक और कवि, मौलाना हसरत मोहिनी ने 17 अक्टूबर, 1949 को संविधान में अनुच्छेद 370 के उल्लेख के संबंध में संविधान सभा में एक प्रश्न उठाया था और इस भेदभाव के वजह के कारण का मांग किये थे। यहां तक कि भारतीय संविधान के वास्तुकार डॉ. बी.आर.अम्बेडकर ने अनुच्छेद 370 का मसौदा तैयार करने से इन्कार कर दिये थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल भी संविधान में अनुच्छेद 370 को शामिल करने के खिलाफ थे क्योंकि यह अनुच्छेद भेदभाव करने का एक तरीका था।
अंत में अनुच्छेद 370 का लेख गोपालस्वामी अयंगार द्वारा तैयार किया गया था, जो भारत के पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल में पोर्टफोलियो के बिना मंत्री थे। वे अनुच्छेद 370 के पक्ष में थे क्योंकि उस समय जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ युद्ध के वजह से जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्य भारत में एकीकृत करने के लिए तैयार नहीं थे।
पंडित जवाहर लाल नेहरू अनुच्छेद 370 के पक्ष में थे लेकिन कहे थे कि यह एक अस्थायी प्रावधान है और समय के साथ समाप्त कर दिया जाएगा। इस प्रकार, अनुच्छेद 370 अस्थायी और इस आशा के साथ तैयार किया गया था कि एक दिन जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का हिस्सा बन जाएगा। लेकिन आज तक यह नहीं हुआ।
भारत – पाकिस्तान के विभाजन के समय, माउंटबेटन ने पं. जवाहर लाल नेहरू से कहा था कि जम्मू-कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र संघ मे उठायें लेकिन उस समय शेख अब्दुल्ला वहां के प्रधान मंत्री नियुक्त किये गये और शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने के लिए नेहरू को आश्वस्त कर लिया क्योंकि अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर रियासत राज्य को एक स्वायत्त शासक के रूप में शासन करना चाहता था। इसी लिए अनुच्छेद 370 का प्रारूप तैयार किया गया था और संविधान में शामिल किया गया था। साथ ही जम्मू-कश्मीर समस्या पर भारत-पाकिस्तान संघर्ष में संयुक्त राष्ट्र संघ को हस्तक्षेप करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय पहलू भी जोड़ा गया था।
हालांकि अनुच्छेद 370 नर और मादा के बीच भेदभाव नहीं करता है, लेकिन महिलाओं को विवाह के बाद राज्य के स्थायी निवासी बनने के लिए वर्तमान स्थिति की औपचारिकता पूरा करना पड़ता है। इसके अलावा अनुच्छेद 370 के तहत राज्य का सीमा न तो कम किया जा सकता है और न ही सीमा का विस्तार किया जा सकता है। अनुच्छेद 370 अन्य राज्यों के लोगों को जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने का इजाजत नहीं देता है।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने एक बार कहा था कि अनुच्छेद 370 राज्य और भारत सरकार के बीच संबंधों को परिभाषित करता है, और यदि इसे खत्म कर दिया गया तो यह भारत में जम्मू-कश्मीर के प्रवेश को पुनर्जीवित करेगा। अनुच्छेद 370 राज्य और बाकी भारत के बीच एकमात्र लिंक है।
जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जेकेपीसीसी) अनुच्छेद 370 के पक्ष में है और इसे भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानती है। उनके अनुसार, राज्य को केंद्रीय कानून के लाभ प्राप्त करने का यही एकमात्र तरीका है।
सरकार को चाहिए कि अनुच्छेद 370 को खत्म करें ता कि जम्मू-कश्मीर भी देश के अन्य राज्यों के तरह समान कानून के दायरे मे आये। इससे सरदार बल्लभ भाई पटेल का सपना भी साकार होगा।
Jane 1947 में भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार कौन है? Who is responsible for the partition of India in 1947?